मात पिता गुरु प्रभु चरणों में,
धर ले मनवा ध्यान,
इन्ही से है अपना कल्याण,
इन्ही से है अपना कल्याण,
मन मन्दिर में इन्हें बिठाकर,
देखो विश्व महान,
इन्हीं से है अपना कल्याण,
इन्हीं से है अपना कल्याण।।
तर्ज – देख तेरे संसार की हालत।
मात पिता की भक्ति करके,
प्रथम पूज्य भये गौरीनंदन,
पुण्डलीक प्रह्लाद श्रवण ध्रुव,
चरणों में करते थे वन्दन,
आज्ञा माने पुरुषोत्तम श्री,
रामचन्द्र भगवान,
इन्हीं से है अपना कल्याण,
इन्हीं से है अपना कल्याण।।
सद्गुरु सच्ची राह दिखाके,
भवसागर से पार कराये,
भक्तों पर ये किरपा करके,
प्रभु मिलन की राह बताये,
बिना गुरु के मुक्ति नहीं है,
जानै सकल जहाँन,
इन्हीं से है अपना कल्याण,
इन्हीं से है अपना कल्याण।।
लख चौरासी भटक-भटक कर,
प्रभु कृपा से नर तन पाया,
काम क्रोध मद लोभ मोह ने,
इस भोले मन को भरमाया,
“परशुराम” सत रज तम तन को,
अर्पण कर नादान,
इन्हीं से है अपना कल्याण,
इन्हीं से है अपना कल्याण।।
मात पिता गुरु प्रभु चरणों में,
धर ले मनवा ध्यान,
इन्ही से है अपना कल्याण,
इन्ही से है अपना कल्याण,
मन मन्दिर में इन्हें बिठाकर,
देखो विश्व महान,
इन्हीं से है अपना कल्याण,
इन्हीं से है अपना कल्याण।।
लेखक एवं प्रेषक – परशुराम उपाध्याय।
श्रीमानस-मण्डल, वाराणसी।
मो-9307386438
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